Saturday 24 January 2015

वंश दोषों को दूर करने में कारगर है होमियोपेथी

बहुत सी तकलीफें हमें धातुगत दोषों के कारण उत्पन्न होतीं हैं.हमारे जन्म से पहले परिवार में किसी को हुई कोई खतरनाक बीमारी के कारण वन्शागुत आधार पर मिलती है। यह जरूरी नहीं है की, पूर्वज को जो तकलीफ हुई हो वही आपको हो। कोई अन्य बीमारी ठीक होने में रोड़ा भी बन सकती है.
अनेक बीमारी वंश दोष के कारण हो सकती है, जैसे फोड़े-फुंसी,सुजाक , दमा, टीबी आदि। फोड़े-फुंसी,सुजाक , खुजली के दब जाने के कारण बहुत सी बीमारियाँ हो जाती हैं.कोई भी तकलीफ हो सकती है -जैसे दमा, टीबी, दिल की बीमारियाँ। शरीर, जोड़ों में बाय का दर्द।
फोड़े-फुंसी,सुजाक , टीबी आदि तकलीफें जहाँ बहुत गर्म एलोपैथी दवा , इंजेक्शनों के जरिये जहाँ दबा दी या सुखा दी जाती है, वहीं होमियोपेथी लक्षणों को दूर कर बीमारी जड़ से ख़त्म कर इनके दब जाने
से होने वाली दूसरी बीमारियों के होने संभावना ख़त्म देती है. होमियोपेथी से इलाज बच्चे होने से पहले करा लिया जाए तो वह वंश दोष, बीमारी आगे की पीढी में नहीं जाएगी। होमियोपेथी चिकित्सा पद्धति के अनुसार खानदान में चाहे पहले की पीढी में किसी को सुजाक , टीबी, दमा, आदि रोग हुए हों, तो आने वाली पीढी में यह रोग होने की संभावना रहती है - होमियोपेथी से इस संभावना को रोका जा सकता है। अच्छे चिकित्सक परिवार में हुई बीमारियों के इतिहास को ध्यान में रखते हुए इलाज करते हैं - फलतः इससे बीमारी ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है या ये दवाएं सोरा विष को समाप्त कर अन्य ली जाने वाली दवाओं के लिए काम का मार्ग प्रशस्त करती है। सल्फर , सिफेलियनियम , मैडोरिनम, सोरिनमआदि ढेरों दवाएं खानदानी दोषों को दूर करने का काम करतीं हैं।
मैडोरिनम: यह वंश की वजह से होने वाली बीमारियों में काम आने वाली नोसोडस दवा है। नोसोडस यानी किसी बीमारी के कीटाणु या पीब से तैयार दवा। यह दवा उस किसी भी बीमारी में काम आ सकती है, जो परिवार में किसी को हुए सुजाक (गुप्त रोग ) के दब जाने की या होने की वजह से वर्तमान की पीढी में कोई बीमारी हुई हो। यह दवा वात रोग -कंधे, कूल्हे, घुटने आदि सभी जोडों में दर्द, चलने, फिरने वाला दर्द में अधिक फायदा करती है. क्योंकि कहा जाता है , वात रोग होने का प्रमुख वजह यह भी सम्भव है की परिवार के किसी पूर्व पुरूष -पिता,दादा आदि को सुजाक (गुप्त रोग) हुआ हो, और उनके सुजाक का विष वर्तमान पीढी में आ गया हो। साधारण वात रोग में भी यह फायदा करती है.
कोई भी बीमारी हो, लेकिन खानदान में किसी को सुजाक किसी को सुजाक हुआ हो तो यह दवा कोई भी बीमारी ठीक होने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, लेकिन किसी नै बीमारी में इसका जल्दी से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ज्यादातर पुराणी तकलीफ में ही दी जाती है, उसमें भी कई चुनी हुई काफी दवाई देने के बाद भी जब कोई फायदा नहीं हो रहा हो, दी जाती है।
कई बार पति के कारण सुजाक का विष स्त्री के शरीर में पहुँच जाता है और कोई बीमारी होने पर ठीक होने का नाम नहीं लेती - तब भी इस दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है।इस दवा के प्रमुख लक्षण हैं:- बुखार में हाथ तथा पैर ठंडे रहने, गर्दन, मुंह गर्म व सिर में दर्द के साथ जलन, दबाव महसूस होना. पेशाब करते समय जलन तथा दर्द व वात का किसी प्रकार का दर्द.
इस दवा की पावर 200या उससे ऊपर इस्तेमाल करनी चाहिए. परन्तु यह दवा किसी अनुभवी चिकित्सक की कई बिना नहीं कई जानी चाहिए।
सोरिनम: खाज-खुजली की पीब से तैयार यह दवा सोरा विष की वजह से होने वाली सभी सभी बीमारियों में फायदा करती है. कई बार खाज-खुजली के दब जाने की वजह से होने वाली खांसी, जुकाम, बुखार आदि तकलीफ में बहुत बढ़िया काम आती है. शरीर में कोई भी बीमारी हो,लेकिन लक्षण अनुसार कई दवाई देने के बाद भी आराम नहीं आ रहा हो तो यह दवा अन्य दवाओं की क्रिया करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
कोई नई बीमारी, जिसका कोई विशेष कारण नजर न आए तो तब भी यह दवा दी जा सकती है. इस दवा का एक लक्षण और है, भूख काम लगना या अधिक भूख लगना- रत को जागकर भी खाना खाना. बार-बार सर्दी सताती हो, जरा सी ठण्ड लगते ही सर्दी लग जाती हो, यहाँ तक कि गरमी के मौसम में भी सर्दी लग जाना- तब भी इस दवा का इस्तेमाल करना चाहिए.नहाने के बाद भी शरीर कि बदबू न मिटना. मल, पसीना, पेशाब, स्त्रियों के मासिक धर्म, सफ़ेद पानी आदि में बदबू. थोड़ी सी गर्मी से भी खुजली बढ़ जाना. इतनी खुजली कि खुजली वाली जगह भी घाव हो जाते हैं. भोजन अधिक खाने के बावजूद शरीर में ताकत न आना . डकार में सड़े अंडे की सी बदबू आना. त्वचा पर भूसी जैसा चर्म रोग हो- जो सर्दी में बढ़ता है, उसमें भी यह फायदा करती है।
सिफेलियनियम: उपदंश के घाव के विष से बनने वाली यह नोसोडस दवा तब काम आती है, जब दूसरी दवाओं से स्थाई फायदा नहीं होता, यानी बामारी ठीक होकर फिर प्रकट हो जाती है. इसकी तकलीफें रात को बढती हैं. मुंह का दाहिना हिस्सा पक्षाघात से ग्रस्त होना, मुंह का कोई घाव, दांतों में कोई तकलीफ, सिर में गांठें होना व स्नायु सिर दर्द में यह दवाई फायदा करती है। यह दवा लेने पर कोई बीमारी तीव्र गति से बढा सकती है, इसलिए बिना डाक्टर की देखरेख में न लें, पूरी जानकरी व अनुभव के बाद इस दवा का प्रयोग करें.
बैसलीनम: यह नोसोडस दवा टीबी से ग्रस्त फेंफड़ों की पीब से तैयार की जाती है तथा अधिक पुरानी खांसी में इस्तेमाल की जाती है, जब काफी दवाई देने के बाद भी खांसी में आराम न हो रहा हो.टीबी हो या टीबी बनने के से लक्षण हों. परिवार या खानदान में किसी को टीबी रही हो या हो. लक्षण व लेने के तरीके के बारे में जानने के लिए खांसी वाला अध्याय देखें।
स्टैफिसग्रिया: बच्चे के दांत जल्दी सड़ गल जाते हैं, काले पड़ जाते हैं, मसूड़े फूलते हैं, तब इस दवा का इस्तेमाल करना चाहिए। हो सकता है कि परिवार के किसी पुरुष को सुजाक(गुप्त रोग) हो, इस वजह से बच्चा इन तकलीफों को भोग रहा हो तो यह दवा काम कर जाती है तथा उस विष को ख़त्म कर सकती है जिससे दूसरी दवा का काम करना आसान हो जाता है।
सल्फर: यह सोरा दोष नाशक दवा है.यह गंधक से तैयार होती है. त्वचा रोग की मुख्य दवा होने के कारण यह काफी बार रामबाण का काम कर जाती है. जब किसी बीमारी में काफी दवाएं देने के बावजूद फायदा न होने पर ज्यादातर चिकित्सक इन्हीं लक्षणों में काम आने वाली अन्य दवाओं की अपेक्षा इसी दवा को देतें हैं। यह दवा अन्य दवाओं को क्रिया करने का मार्ग प्रशस्त करती है, जब यह दवा भी काम नहीं करती, जब अन्य दवाएं दी जातीं हैं. फिर भी हम कहेंगे कि लक्षण मिलान जरूरी है.
इस दवा के प्रमुख लक्षण हैं - अक्सर सर्दी लग जाना. सर्दी लगने के शिकार इसके रोगी को सोरिनम दवा के विपरीत नहाना पसंद नहीं करता, क्योंकि उसको बीमार होने का डर रहता है. सर्दी लग जाने के बावजूद उसे ठंडक अच्छी लगती है. यह दवा शरीर से कमजोर व बुद्धिमान तथा जिनकी चलने की गति तेज होती है, उन पर अच्छा काम करती है। शरीर से बदबू आती है- जो नहाने के बाद भी नहीं जाती. पैर, हाथ, तलवे में जलन होती है. पैर में ऐंठन होती है. रात को नींद नहीं आती, दिन में नींद की झपकी आती रहती है. बच्चे को बहुत भूख लगती है, जो सामने आता है उसे खा जाता है. हमेशा कुछ न कुछ खाने को मांगता रहता है. त्वचा रोग में फुंसी हो सकती है, सूखी खुजली भी.खुजली सूखी होती है,लेकिन खुजलाने में आनंद आता है- बाद में जलन होती है. इसकी खुजली का लक्षण बवासीर व मस्सों में भी है.
पेशाब व शोच करने के की जगह त्वचा रोग की वजह से लाल हो जाती है. शोच करते समय दर्द, दर्द के कारण बच्चे को शोच करने में डर लगता है. बुखार में रोगी ठंडक चाहता है, मुंह सूखा रहने की वजह से रोगी बार-बार पानी पीता है- मुंह, गले का सूखापन दूर करने के लिए. जीभ के किनारे लाल होते हैं , जीभ के बीच में सफेद निशान होता है.मानसिक लक्षण में मरीज बड़ा ही चिड़चिडा होता है, जरा सी बात ही से नाराज हो जाता है.किसी के उपदेश तो सुनना ही नहीं चाहता. कोई भी तकलीफ हो, आधी रात के बाद अधिक परेशान करती है. खांसी बलगम वाली होती है, जो सुबह अधिक बढती है.बलगम की वजह से छाती में घडघडाहट की आवाज आती है. इसका एक और उपयुक्त लक्षण है- मरीज की तकलीफ खड़े होने व बिस्तर से तकलीफ बढती है.कमर में इतना अधिक दर्द होता है कि उठने-बैठने में भी परेशानी होती है.दवा के लक्षण मिलने पर यह दवा आरम्भ में ली जा सकती है.
-कैलाश चंद चौहान

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