Wednesday 15 April 2020

भारतरत्न डॉ.आंबेडकर के जन्मदिवस पर डॉ.पूनम तुषामड़ की कविता


महापुरुष 

नहीं !आप नहीं हैं
कोई देव पुरुष ,मसीहा
या कोई अवतार.
ये सब तो हैं धर्म सत्ता 
का ढोल पीटने वालों के 
हथियार .
बाबा साहेब...
आप ईश्वर तो बिलकुल 
भी नहीं हैं 
क्योंकि ईश्वर ??
कमजोरों से बोला 
सबसे शक्तिशाली 'झूठ' है.
जिसकी पैरवी करने को 
रचे गए सदियों से न जाने 
कितने झूठे धर्म ग्रन्थ,वेद 
और पुराण .
इसअस्तित्व विहीन ईश्वर 
के नाम से छली कपटियों ने 
कभी छल से तो कभी बल 
से बनाया निशाना, किया शिकार   
निरीह ,निहथ्यों का .

बाबा साहेब !
आप केवल मानव हैं .
मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण
मनुष्य जो है सृष्टि की 
सर्वश्रेष्ठ रचना .
जिसने सीखा है सभ्यता के 
गर्भ से ही सदा 
श्रम,संघर्ष और सामजिक 
संगठन.
जो बदल सकता है
अपनी चेतना शक्ति,शिक्षा 
व ज्ञान के बल पर 
सदियों पुरानी,फूहड़ 
जर्जर वर्णव्यवस्था को 
पलट सकता है 
मठाधीशों,पोंगापंडितों की
धर्मसत्ता,फूंक सकता है 
'मनुस्मृति'.
जो जगा सकता है 
चेतना और आत्मविशास 
सदियों से दलित,उपेक्षित 
अस्मिताओं में .
बाबा साहेब 
आपने दी कमजोरों को 
ताकत 
बेजुबानो को ज़ुबान ,
आपने दिए सबको समान हक़ 
सड़क से संसद तक 
बना दिया मार्ग जनमानस का  
लिखकर सर्व समतामूलक 
'विशाल संविधान'  
जय भीम 

डॉ.पूनम तुषामड़

Tuesday 14 April 2020

बाबा साहब के नाम ख़त

मान्यवर बाबा साहब 

सादर प्रणाम!

आपने कहा था: शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो ! मैंने इस सूत्र को जीवन में क्रियान्वित करने का प्रयास निरंतर किया। इसीलिए मैंने आपके इस सूत्र के पहले हिस्से को अपना कैरियर बना लिया। यानि मैं एक शिक्षक हूँ । शिक्षा तो निरंतर चलने वाला कार्य और व्यवहार है। शिक्षा को सही-सही समझने के प्रयास होते रहे हैं। आपने शिक्षा को शेरनी का दूध कह कर शिक्षा के समाज को सशक्त करने में महत्व को रेखांकित किया था। शिक्षा को महत्व देने वाले आपके विचार को ख़ुद UNESCO ने अपनाया और  Knowledge  is power कहा।


ब्रिटिश काल में शिक्षा के दायरे को बढ़ाने के प्रयास निरंतर हुए और उस समय सबके लिए समान शिक्षा के सिद्धांत की ओर बढ़ा गया। किंतु, सामाजिक ढाँचे में अंतर्निहित ग़ैरबराबरी के व्यवहार ने इसे लागू होने में क़दम-क़दम पर बाधा उत्पन्न की। आपसे ज़्यादा शिक्षा के इदारों में होने वाले भेदभाव को भला कौन जान सकता है! उसको याद करके मैं आपको और स्वयं को कष्ट नहीं देना चाहता। इस दृष्टि से हमने प्रगति तो की है किंतु अब भी जाति आधारित भेदभाव से सामाजिक वातावरण पर्याप्त रूप से स्वच्छ नहीं हुआ है। यह प्रदूषण स्कूल और कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालयों तक व्याप्त है। इसके विरुद्ध आपकी प्रतिबद्धता और संघर्ष निरंतर प्रेरणा बन रहा है। इसीलिए विद्यार्थियों के आंदोलनों में आपके विचार पथप्रदर्शक का कार्य कर रहे हैं। आपके विचारों की आज सर्वाधिक प्रासंगिकता है।

उत्पीडितों को शिक्षित करने की आवश्यकता को आपने नए सिरे से परिभाषित किया था। इस संदर्भ में पश्चिम के ज्ञान-विज्ञान का पक्ष लिया। अपने यहाँ वाला वर्ण श्रेष्ठता आधारित ज्ञान तो सदा से उत्पीडितों के विरुद्ध ही था। वर्ण और उससे विकसित जाति व्यवस्था तो एक मनुष्य को दूसरेसे हीन बताने  के सिद्धांत पर टिकी थी। उसका सारा ज्ञान ब्राह्मण श्रेष्ठता को साबित करने में ख़र्च होता था। अतः आपका संघर्ष इसी  विरुद्ध शुरू हुआ।

परंपरा का अवलोकन करने के क्रम में आप बुद्ध के दर्शन की ओर गए। बुद्ध की शिक्षाओं को आधुनिक समता के सिद्धांत के अनुकूल पाया इसीलिए उसे अपनाया। आपने करुणा, समता, अहिंसा और न्याय की अवधारणाओं को नए समाज के निर्माण के लिए उपयुक्त पाया अत: उसे अपने विचारों में शामिल किया। मध्ययुग के प्रसिद्ध संत कवि कबीर की शिक्षाओं से जड़ शास्त्र से बहस करके उसे निरुत्तर  करने की नायाब तरकीब पाई। इसके उपरांत  आधुनिक युग के नवजागरण में महामानव ज्योतिबा फुले के विचारों ने आपको अत्यंत प्रभावित किया। स्वयं उनके द्वारा स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों का आप पर विशेष प्रभाव पड़ा। इसीलिए आपने बुद्ध, कबीर और फुले की त्रयी को अपने महान शिक्षक माना है।

आपने यूरोप के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में उच्चतम शिक्षा और अनुसंधान किए। इस दृष्टि से दलित-बहुजन के साथ समस्त उत्पीड़ित बहुसंख्यक तबके का पथ प्रदर्शित किया। ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों में आपका कार्य उल्लेखनीय रहा। विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान उल्लेखनीय है। इन क्षेत्रों में आपकी समझ के आधार पर सत्ता को आम जन के प्रति जवाबदेह बनाया जा सका है। अर्थशास्त्र में आपके दृष्टिकोण को अमृत्य सेन सरीखे अर्थशास्त्री ने अपना पथ प्रदर्शक माना है। 

आपने संविधान में ऐसे तमाम उपबन्ध किए जिससे वर्ण, वर्ग, लिंग क्षेत्र और अन्य विविध आधारों पर भेदभाव को निर्मूल किया जा सके। इसीलिए आपने शिक्षा के संस्थानों में दुर्बल अस्मिताओं के लिए पहुँच सुनिश्चित करवाने के लिए आवश्यक नियम-उपनियम निर्धारित किए। आपके द्वारा किए गए इन कार्यों से काफ़ी हद तक
लाभ पहुँचा है परंतु हज़ारों वर्ष की जड़ता, प्राचीन संस्कार और मूल्य टूटना अभी प्रतीक्षित है। स्त्री शोषण मुक्ति के लिए आपने शिक्षा को अहम औज़ार के रूप में रखा। इसके लिए वयस्क मताधिकार को अनिवार्य बनाया जबकि यूरोप के आधुनिक कहे जाने वाले अनेक देश इस दृष्टि से पिछड़ी समझ के थे। भारत में भी अनेक राष्ट्रीय नेता इसके विरुद्ध थे। आप शिक्षा सहित सभी संस्थानो में स्त्री भागीदारी को स्वस्थ लोकतंत्र का आधार समझते थे।

शिक्षा ऐसा औज़ार है जिससे तर्क और वैज्ञानिक बोध के आधार पर चिंतन करने पर बल दिया जाना आवश्यक है। इस बात पर आपने मुसलसल ज़ोर दिया कि शिक्षा का वातावरण ऐसा हो जिसमें धार्मिक आडंबर, उससे जुड़े rituals के लिए कोई स्थान न हो क्योंकि ये तर्क आधारित आधुनिक शिक्षा के विरुद्ध है। आपने इस बात की पुरज़ोर वकालत की। संविधान में भी ऐसे अनेक उपबन्ध किए जो इस बोध को प्रोत्साहित करते हैं किंतु एक अध्यापक होने के नाते मैं संवैधानिक प्रावधानों की अवेहलना होते देखता हूँ तो अफ़सोस होता है। मुझे लगता है कि संविधान में वर्णित मूल्यों को अपनाने में और दकियानूसी समाज के प्रतिनिधियों द्वारा इन्हें स्वीकार करने में ख़ासा परेशानी हो रही है। इन मूल्यों को लागू करवाने में आपके द्वारा बताए गए निर्देशों की निरंतर आवश्यकता है।

आपके मिशन का सहयोगी
डॉ. गुलाब सिंह
Mobile: 9968399711

Saturday 21 December 2019

समझें सरल भाषा में सीएए और एनआरसी: एक-दूसरे से जुड़े हैं सीएए और एनआरसी- कन्नन गोपीनाथन



सीएए और एनआरसी का खौफ देखना हो तो बिहार का दौरा करिए। वहां इस वक्त आधार कार्ड सेंटरों में नोटबंदी वाली भीड़ दिख रही है। रात के दो-दो बजे तक आधार कार्ड सेंटरों में लाइन लगी     रहती है। लोग अपना आधार कार्ड दुरुस्त करा रहे हैं। उन्हें लगता है कि इससे बात बन जाएगी  

अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर आईएएस ऑफिसर कन्नन गोपीनाथन ने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद से वे देश भर में घूम-घूमकर अभिव्यक्ति की आजादी पर अपनी बात कहते रहे। इसी बीच नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) आ गया। केंद्र के कई नेताओं ने इसे एनआरसी के साथ जोड़कर लागू करने की बात कही। अब कन्नन देश भर में घूम-घूमकर सीएए और एनआरसी पर जागरूकता सभाएं कर रहे हैं। राहुल पाण्डेय ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:
• आईएएस जॉइन करने के पीछे आपकी क्या सोच थी और छोड़ने के पीछे क्या वजह रही?रांची के बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी करने मैं नोएडा आया। वहां सेक्टर 16 और अट्टा मार्केट में झुग्गी के बच्चों को पढ़ाता था। वहां समझ में आया कि सिस्टम के अंदर रहकर काम करना होगा, तभी कोई बड़ा बदलाव हो सकता है। इसलिए मैंने आईएएस की तैयारी शुरू की और 2012 बैच में आईएएस बना। इस दौरान अलग-अलग राज्यों और विभागों में काम करता रहा। जम्मू-कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 हटाया गया तो वहां प्रशासन ने लोगों की आवाज दबाई। समस्या 370 हटाने या लगाने से नहीं, बल्कि आवाज दबाने से उपजी। मुझे लगा कि ये सही बात नहीं है और कम से कम मैं लोगों की आवाज दबाने के लिए आईएएस में नहीं आया। इसलिए मैंने रिजाइन कर दिया। हालांकि सरकार ने अभी तक मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है।



• सीएए और एनआरसी का विरोध कैसे शुरू हुआ?रिजाइन करने के बाद मैंने ठीक से तय नहीं किया था कि किस ओर जाना है, पर अलग-अलग जगहों से ‘टॉक’ के लिए बुलावा आने लगा। इसी सिलसिले में एक बार चेन्नै में ‘बोलने की आजादी’ विषय पर बोल रहा था कि बीच में एक लड़की ने टोक दिया। नॉर्थ ईस्ट की उस 23 साल की लड़की का कहना था कि बोलने की आजादी उसकी समझ से बाहर है क्योंकि अभी तो उसे यही डर है कि वह इस देश में रह पाएगी या नहीं। उसके दादा सेना में थे और वह 1951 का डॉक्युमेंट खोज रही थी जो उसे मिल नहीं रहा था। उस शो में खड़ी होकर वह रो रही थी और मैं निरुत्तर था। मैंने खुद से यही पूछा तो पता चला कि बीस साल से ज्यादा पुराने कागज तो मेरे पास भी नहीं हैं। तब से मैं लोगों को बता रहा हूं कि कैब (अब सीएए) और एनआरसी किस तरह से हम सबके लिए नुकसानदेह है।

• अब तक आप कहां-कहां जा चुके हैं और आगे का क्या प्रोग्राम है?आगे का तो मैंने नहीं सोचा, लेकिन बिहार के कई जिलों में जा चुका हूं। सीएए और एनआरसी का खौफ देखना हो तो बिहार का दौरा करिए। वहां इस वक्त आधार कार्ड सेंटरों में नोटबंदी वाली भीड़ दिख रही है। रात के दो-दो बजे तक आधार कार्ड सेंटरों में लाइन लगी रहती है। लोग अपना आधार कार्ड दुरुस्त करा रहे हैं। उन्हें लगता है कि इससे बात बन जाएगी। उत्तर प्रदेश में भी कई जिलों में मैं लोगों को इसके नुकसान बता चुका हूं। महाराष्ट्र और साउथ में तो लगातार बोल ही रहा हूं। इसके बारे में अभी बहुत जागरूकता फैलानी होगी।


• लोगों की क्या प्रतिक्रिया है?लोग बहुत डरे हुए हैं। सबसे ज्यादा तो गरीब मुसलमान और दलित-आदिवासी डरे हुए हैं। सचाई यह है कि भारत में किसी के भी कागजात पूरे नहीं हैं और अगर हैं भी तो उनमें कहीं न कहीं कोई गड़बड़ी छूटी हुई है। वॉट्सएप के मुस्लिम ग्रुप में इस वक्त सिर्फ एक ही चर्चा ट्रेंड में है- डॉक्यमेंट्स कैसे पूरे करें/ उनको पता है कि कागजात नहीं होंगे तो ये सीधे डिटेंशन सेंटर भेजेंगे। सबने देखा कि पिछले दिनों कैसे केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को डिटेंशन सेंटर बनाने का लेटर भेजा है।

• सीएए और एनआरसी को अलग-अलग देखें या एक साथ?सीएए इसलिए आया क्योंकि एनआरसी लाना चाहते हैं। असम में एनआरसी हुआ तो सबसे ज्यादा हिंदू ही डिटेंशन सेंटर पहुंच गए। कागज तो हिंदुओं के पास भी नहीं हैं। ये चीज राजनीतिक रूप से इनके खिलाफ जाती है। अब वह इसके लिए सीएए ले आई है। एनआरसी और सीएए दोनों आपस में जुड़े हुए हैं।

• किस-किस को यह कानून प्रभावित करने जा रहा है और कैसे?अगर आपके पास करेक्ट डॉक्युमेंट्स नहीं हैं तो यह आपको भी प्रभावित करेगा। मुझे लगता है कि सरकार नेशनल पॉप्युलेशन रजिस्टर के जरिए इसकी शुरुआत करेगी। सरकारी आदमी घर आएगा और हमारे कागजात चेक करेगा। वहां अगर कोई कमी हुई तो असम की ही तरह हमारे नाम के आगे संदिग्ध का निशान लग जाएगा और फिर हमें यह साबित करना होगा कि हम यहां के नागरिक हैं। पहले यह सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह साबित करे, लेकिन अब उल्टा हो गया है। अब हम सबको साबित करना होगा कि हम भारत के नागरिक हैं। ऐसे में सीन साफ है। जो सबसे गरीब हैं, जो बाहर काम कर रहे हैं, उन्हें इससे सबसे ज्यादा दिक्कत होगी। हर साल देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ और सूखे से प्रभावित होता है। वहां विस्थापन नियमित चलता है, वे भुगतेंगे। आदिवासियों के पास तो कोई कागज ही नहीं होता।

• आईएएस लॉबी में इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया है?हम सब इंडिविजुअल्स हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई लॉबी है। अधिकतर तो यही सोचते हैं कि मनपसंद पोस्ट मिल जाए या मनपसंद जगह ट्रांसफर हो जाए। मुझे लगता है कि जिस संविधान पर हाथ रखकर इन्होंने शपथ ली है, आधे भी उसका अर्थ ठीक से नहीं जानते होंगे।

                                                                                         नवभारत टाइम्स के लिए साक्षात्कार लिया
                                                                                                               राहुल पाण्डेय                                                                                                           साभार नवभारत टाइम्स

Friday 20 December 2019

अपनाएं ये खास तरीके ताकि दुरुस्त रहे दिमाग




हम लोग बहुत टोका-टाकी करने पर अपने शरीर की ओर तो ध्यान देते हैं, लेकिन अपने दिमाग को अकसर नजरअंदाज करते रहते हैं। आज भी देश के कई हिस्सों में अगर कोई डिप्रेशन की शिकायत कर दे, तो उसे पागल कहा जाता है। पर इस सोच में तब्दीली आना बेहद जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह जरूरी है कि लोग इस विषय पर खुल कर बातें करें, ताकि इससे जुड़ी धारणाओं को तोड़ा जा सके। कुछ बिंदुओं पर ध्यान देकर आप मानसिक तौर पर स्वस्थ रह सकते हैं।
संकेतों को नजरअंदाज करना सही नहीं : 
हम मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित संकेतों को कभी जान-बूझ कर तो कभी अनजाने में अनदेखा करते हैं। समाज सेवक नीरज दोशी कहते हैं, ‘मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे लोगों को समझा नहीं जाता। यह एक बड़ी समस्या है। हमारे समाज में ऐसी चीजों पर बात करना मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख कहते हैं, ‘मानसिक स्वास्थ्य जीवन की समग्र गुणवत्ता को निर्धारित करने में मदद करता है। हमें उस पर ध्यान देने की जरूरत है। हम जितना अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं, उतना ही ध्यान हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य पर भी देना चाहिए।’
मुद्दे की चर्चा जरूरी : मनोवैज्ञानिक डॉ. आरती सूर्यवंशी बताती हैं, ‘अगर किसी के परिवार में मानसिक रोगी है, तो सबसे पहली कोशिश यह होनी चाहिए कि उसके आसपास का माहौल बेहतर बनाया जाए। उसे किसी भी तनाव से मुक्त रखा जाए। साथ ही उसे
आगे वह कहती हैं, ‘जब आप अपने बच्चों के साथ बैठकर उनकी भावनाओं के बारे में बात करते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप जिस बारे में बात कर रहे हैं, उस पर ध्यान केंद्रित करें। किसी भी बात पर चर्चा करने से पहले आप उन्हें शांत रहना और अपनी भावनाओं को पहचानना सिखाएं। जब वे परेशान हों, तब किसी मुद्दे पर चर्चा करना सही नहीं होगा। हमें तब तक इंतजार करना चाहिए, जब तक वे दिमागी रूप से शांत न हो जाएं और आपका पक्ष सुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार न हो जाएं।’
माता-पिता होने के नाते कोई भी अपने बच्चे के लिए सबसे बेहतर ही चाहेगा। हर माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगर उनका बच्चा तनाव में है, तो वे उसके लक्षणों को लेकर सजग रहें। दोशी कहते हैं, ‘उनके व्यवहारों को लेकर आप चिंतित हो सकते हैं, इसलिए आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें सही मदद मिले। मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषय पर चर्चा करने के लिए माता-पिता को अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए। इस विषय को भारत में निषेध माना जाता है और लोग आमतौर पर ऐसे मुद्दों पर चर्चा करने के लिए नहीं खुलते हैं।’
सुरक्षित और प्रेम महसूस कराया जाए। उसे सहज महसूस करवाया जाए और अपनी भावनाएं जाहिर करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।’

वर्जित माना जाता है। इस  मुद्दे को लेकर आज भी समाज में कई भ्रांतियां हैं, जिनकी मुख्य वजह इन्हें लेकर जागरूकता का अभाव है। यह समझना जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य हमारे जीवन पर एक बड़ा प्रभाव डालता है।’
क्या हैं लक्षण
किसी में अगर मानसिक बीमारी की शुरुआत होती है, तो सबसे पहले उसकी भूख और नींद में तब्दीली आती है। बहुत कम या बहुत अधिक नींद आना, खाने से जुड़ी आदतें बदलना - ये  मानसिक स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति के शुरुआती लक्षण हैं। हर मानसिक बीमारी की अपनी बारीकियां होती हैं। दोशी कहते हैं, ‘उदाहरण के लिए, अवसाद के दौरान एक व्यक्ति अपनी पसंदीदा हर चीज में रुचि खो देता है- जैसे संगीत, दोस्तों के साथ बातचीत आदि।’ मनोवैज्ञानिक सलाहकार रितिका अग्रवाल मेहता कहती हैं, ‘हर मानसिक बीमारी के अपने अलग तरह के लक्षण होते हैं, पर सामान्य लक्षणों की बात की जाए, तो इनका नाम लिया जा सकता है-
- भूख और नींद में अचानक बहुत बढ़ोत्तरी होना या बहुत कमी आ जाना
- व्यवहार और व्यक्तित्व में अचानक परिवर्तन होना
- बार-बार और जल्दी-जल्दी बदलता मूड
- दैनिक गतिविधियों को निपटाने में कठिनाई
- निराशा, लाचारी और व्यर्थता की व्यापक भावनाएं होना
- आत्महत्या के बारे में बात करना  या सोचना
- दैनिक गतिविधियों से जुड़ी छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर अत्यधिक चिंता जताना
- मादक द्रव्यों जैसे शराब, निकोटीन या ड्रग्स की लत लगना
-आक्रामक हो जाना या हिंसक व्यवहार करने लगना
- अजीब से ख्याल आना या अजीब व्यवहार करना
- हलूसिनेशन (भ्रम)  
अपनाएं ये खास तरीके...
मनोवैज्ञानिक सलाहकार रितिका अग्रवाल मेहता बताती हैं  मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तरीका यह है कि आप पर्याप्त नींद लें और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। इसके अलावा आप और भी कुछ तरीकों को अपना सकते हैं, जैसे-
- चिंता और खराब मूड को एक भावना के रूप में पहचानें। इनसे जितना संभव हो, दूरी बनाए रखने की कोशिश करें।
-दोस्तों के साथ समय बिताना भी जरूरी है। किसी ऐसे व्यक्ति से बात करें, जिस पर आप विश्वास करते हैं। समय-समय पर उसे बताते रहें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। अगर कोई समस्या हो तो ऐसे लोगों की मदद लें। याद रहे, हर समस्या को अकेले सुलझाना जरूरी नहीं होता।
- सोशल मीडिया के इस्तेमाल की समय-सीमा तय करें। इस पर एक नजर रखने के लिए आप अपने फोन की विशेष ‘डिजिटल वेलनेस सेटिंग’ का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- नियमित रूप से व्यायाम करें।
- अपने शौक को पूरा करने के लिए हर दिन थोड़ा-बहुत समय जरूर निकालें। अगर आपका कोई शौक या जुनून है ही नहीं, तो इसे विकसित करें।
- अपनी भावनाओं को लेकर सजग रहें। ऐसा करने से कोई समस्या महसूस होने पर आप तुरंत ही किसी की मदद ले पाएंगे।
- यदि आपने इन सभी तकनीकों पर काम किया है और फिर भी आपको मदद नहीं मिल रही है, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लें।
                                                                                                -अंजलि शेट्टी,नई दिल्ली
                                                                                                              हिंदुस्तान, नई दिल्ली से साभार 

Saturday 11 July 2015

बारिश के मौसम में सर्दी-जुकाम जब करे परेशान

ध्यान रखें कि बारिश के मौसम में हमारी पाचन क्रिया और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस लिए हमारी खान-पान उसी प्रकार होना चाहिए. उन खाने-पीने की चीजों का इस्तेमाल न करें, जो पचने में भारी हों. बीमार होने पर कुछ ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करें और हमारे पेट को ठीक करे.
बारिश में भीगे नहीं कि सर्दी-जुकाम का शिकार! फिर शुरु होता घरेलू नुस्खों का दौर. अदरक, लौंग आदि की चाय. नहीं आराम आया तो भागे अंग्रेजी दवाओं के डाॅक्टर के पास. तुरंत ठीक भी होना है. लेकिन एक यह भी सच्चाई है कि ज्यादा अंग्रेजी दवाओं का प्रयोग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता है. छोटी-छोटी तकलीफों में अंग्रेजी दवाओं के प्रयोग शरीर के लिए घातक साबित होता है. इसलिए अच्छा रहे कि बात-बात पर अंग्रेजी दवाओं के बजाय अन्य पद्धति की दवाओं का इस्तेमाल करें. जैसे होम्योपैथी. होम्योपैथी रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाकर बीमारी को दूर करती है, वो भी शरीर को हानि पहुंचाए बिना. सबसे बड़ी बात यह कि जब आपको अंग्रेजी दवाओं की जरूरत पड़ ही जाए तो अंग्रेजी दवाएं अधिक कारगर तरह से काम करती हैं और जल्दी ठीक भी होते हैं.
होम्योपैथी में सर्दी-जुकाम के लिए दवाओं का भंडार है. एकोनाईट, नेट्रम म्यूर, चायना, फेरम फाॅस, नेट्रम सल्फ, एलियम सीपा, सेंगुनैरिया, एसिड फास आदि
ध्यान रखें, जल्दी-जुल्दी सर्दी-जुकाम होने का मतलब आपका लीवर कमजोर होना भी है. बारिश के मौसम में हमारा लीवर अधिक प्रभावित होता है. इसलिए सर्दी-जुकाम की दवा के साथ-साथ लीवर की दवा भी ले लेनी चाहिए. यदि सर्दी-जुकाम के साथ एसिडिटी बनने और छाती में जलन है तो आईरिश वर्सि0 और नेट्रम सल्फ भी लें.
एकोनाइट नेपलेस: तेज छींक, तेज प्यास है तो इसे जरूर लें. इसके साथ नेट्रम म्यूर, चायना, भी लें.
कुछ दवाओं के संक्षिप्त लक्षण:
एकोनाइट नेपलेस: अचानक ठण्ड लग जाने तथा बार-बार छींक आने पर यह दवा काम करती है. किसी भी तकलीफ की तीव्रता में इसका अच्छा काम रहता ही है, साथ ही गला सूखता हो और तेज प्यास हो तो यह दवा तुरंत अपना असर दिखाती है. तेज छींक में इसके साथ नेट्रम म्यूर भी ले लेनी चाहिए. दोनों दवाओं की 30-30 पावर लेकर देखें. यह भी ध्यान रखें कि किसी समय खांसते-खांसते काफी परेशानी हो रही हो, बेचैनी घबराहट लगे, पानी की प्यास भी हो तो एक खुराक दे देनी चाहिए. यह किसी भी तकलीफ की बढ़ी हुई अवस्था, घबराहट, बेचैनी में बहुत अच्छा काम करती है तथा तकलीफ की तीव्रता कम कर देती है.
नेट्रम म्यूरियेटिकम:  हम जो नमक खाते हैं, उसी से यह दवा तैयार होती है. हल्की सी ठण्ड होते ही सर्दी-जुकाम हो जाता है. इस दवा का मुख्य लक्ष्ण है हाथ, पैर ठण्डे रहना. जिस भी बीमारी में यह लक्षण रहे, यह दवा उसे जरूर देकर देखनी चाहिए- चाहे बीमारी कोई भी हो.
बहुत अच्छा खाना खाने पर भी शरीर कमजोर रहना. बार-बार छींक आने, कब्ज रहने और प्यास लगने पर एकोनाइट नेपलेस के साथ इस दवा को देना चाहिए.
रस टाक्सिकोडेण्ड्रन: ठण्ड या पानी में भीग जाने के कारण सर्दी, जुकाम हो जाने और बदन दर्द में इस दवा का अच्छा काम है.
फेरम फास: रक्त संचय में अपनी क्रिया करती है. कोई तकलीफ एकाएक बढ़ जाने और किसी तकलीफ की प्रथम अवस्था में इसका अच्छा इस्तेमाल किया जाता है. यह किसी भी प्रकार की खांसी- चाहे बलगमी हो या सूखी सब में फायदा करती है. कमजोर व्यक्तियों ताकत देने में यह दवा काम में लाई जाती है. क्योंकि कुछ रोग कमजोरी, खून की कमी की वजह से लोगों को परेशान करते हैं. अतः खून में जोश पैदा करने का काम करती है. फेरम फाॅस आयरन है और दवा आयरन की कमी को भी दूर करती है.
नेट्रम सल्फ: जब मौसम में नमी अधिक होती है, चाहे मौसम सर्दी का हो या बारिश का या फिर और रात उस समय खांसी बढ़ती है. खांसते-खांसते मरीज कलेजे पर हाथ रखता है, क्योंकि खांसने से कलेजे में दर्द बढ़ता है. दर्द बाईं तरफ होता है. दवा दमा रोगियों को फायदा करती है. क्योंकि दमा रोगियों की तकलीफ भी बारिश के मौसम व ठण्ड के मौसम में बढ़ती है.
संगुनेरिया: रात में भयंकर सूखी खांसी, खांसी की वजह से मरीज सो नहीं सकता, परेशान होकर उठ जाना और बैठे रहना. लेकिल बैठने से तकलीफ कम न होना. सोने पर खांसी बढ़ना. दस्त के साथ खांसी. इसके और भी लक्षण है, महिलाओं को ऋतु गड़बड़ी की वजह से खांसी हुई हो तो उसमें यह फायदा कर सकती है. पेट में अम्ल बनने की वजह से खांसी होना, डकार आना. हर सर्दी के मौसम में खांसी होना.
एलियम सीपा: इस दवा का मुख्य लक्षण है जुकाम के समय पानी की तरह नाक से पानी बहना. बहुत तेज छींक. आंख से पानी आना. नाक में घाव होना. जुकाम के कारण सिर में दर्द हो जाना. गरमी में बीमारी बढ़ना.
चायना: चायना का कमजोरी दूर करने भूख बढ़ाने में बहुत अच्छा काम है. खांसी हो, भूख कम लगती हो तो कोई भी दवा लेते समय यह दवा ले लेनी चाहिए. काफी बार लीवर की कमजोरी, शरीर की कमजोरी की वजह से बार-बार खांसी परेशान करती है, बार-बार निमोनिया हो जाता है, खासकर बच्चों को. यदि चायना, केल्केरिया फाॅस, फेरम फाॅस कुछ दिन लगातार दी जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. इस दवा के खांसी में मुख्य लक्षण है- खांसते समय दिल धड़कने लगता है, एक साथ खांसी अचानक आती है कपड़े कसकर पहनने से भी खांसी होती है. इसकी खांसी अक्सर सूखी होती है.
हीपर सल्फ:  इसकी खांसी बदलती रहती है, सूखी हो सकती है, और बलगम वाली भी. हल्की सी ठण्डी लगते ही खांसी हो जाती है. यही इस दवा का प्रमुख लक्षण भी है. ढीली खांसी व काली खांसी में भी यह विशेष फायदा करती है. जिस समय ठण्डा मौसम होता है, उस समय अगर खांसी बढ़ती हो तो, तब भी यह फायदा पहुंचाती है. जैसे सुबह, रात को खांसी बढ़ना. लेकिन ध्यान रखें कि यदि स्पंजिया दे रहे हों, तो हीपर सल्फ नहीं देनी चाहिए, यदि हीपर सल्फ दे रहे हों, तो स्पंजिया नहीं देनी चाहिए.
बेलाडोना: गले में दर्द के साथ खांसी, खांसी की वजह से बच्चे का रोना, कुत्ता खांसी, भयंकर परेशान कर देने वाली खांसी, खांसी का रात को बढ़ना. खांसी सूखी होना या काफी खांसी होने के बाद या कोशिश के बाद बलगम का ढेला सा निकलना. गले में कुछ फंसा सा अनुभव होना. बलगम निकलने के बाद खांसी में आराम होना, फिर बाद में खांसी बढ़ जाना.
इपिकाक: इसका मुख्य लक्षण है, खांसी के साथ उल्टी हो जाना. उल्टी आने के बाद खांसी कुछ हल्की हो जाती है. सांस लेते समय घड़-घड़ जैसी आवाज आना, सीने में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं. यह दवा काफी तरह की खांसियों में फायदा करती है, चाहे निमोनिया  या दमा. कई बार ठण्ड लगकर बच्चों को खांसी हो जाती उसमें भी फायदा करती है. खांसते-खांसते मुंह नीला, आंख नीली हो जाना, दम अटकाने वाली खांसी छाती में बलगम जमना आदि इसके लक्षण हैं.
चेलिडोनियम: दाहिने कन्धे में दर्द होना, तेजी से सांस छोड़ना. बलगम जोर लगाने से निकलता है, वो छोटे से ढेले के रूप में. सीने में से बलगम की आवाज आती है. लीवर दोष की वजह से हुई खांसी में बहुत बढि़या क्रिया दिखाती है. खांसते-खांसते चेहरा लाल हो जाता है. खसरा व काली खांसी के बाद हुई दूसरी खांसी में इससे फायदा होता है.
कोनियम मैकुलेटम: बद्हजमी के साथ खांसी. खांसी सूखी जो स्वर नली में उत्तेजना से उत्पन्न खांसी. इस दवा का प्रमुख लक्षण है, खांसी रात को ही अधिक बढ़ती है, जैसे कहीं से उड़कर आ गई हो. खांसी के साथ बलगम आता है तो मरीज उसे थूकने में असमर्थ होता है, इसलिए उसे सटक जाता है.
एसिड फास्फोरिकम: यह दवा शरीर में ताकत देने का काम करती है और जवान होते बच्चों में अच्छी क्रिया करती है. इसकी क्यू पावर बहुत ही कारगर साबित हुई है. स्नायु कमजोरी और नर्वस सिस्टम को ठीक करती है. बहुत ही जल्दी सर्दी लग जाना. नाक से पानी बहना. तेज छींक, सोने के बाद खांसी बढ़ना. गले में सुरसरी होकर खांसी होना.
ध्यान रखें कि बारिश के मौसम में हमारी पाचन क्रिया और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इसलिए हमारा खान-पान उसी प्रकार होना चाहिए. उन खाने-पीने की चीजों का इस्तेमाल न करें, जो पचने में भारी हों. बीमार होने पर कुछ ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करें और हमारे पेट को ठीक करे.
नोट: उपरोक्त लेख केवल होम्योपैथी के प्रचार हेतु है. कृपया बिना डाॅक्टर की सलाह के दवा इस्तेमाल न करें. कोई भी दवा लेने के बाद विपरीत लक्षण होने पर पत्रिका की कोई जिम्मेवारी नहीं है. 

Friday 15 May 2015

दलित लेखक संघ विवाद : डा. अम्बेडकर को मानने वालों ने ही उनके नारे "संगठित रहो" को मानने से इन्कार कर दिया

डा. अम्बेडकर ने कहा था- संगठित रहो. लेकिन जो खुद को अम्बेडकर का अनुयायी कहते हैं, वही संगठित नहीं रहते. विचारों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन झगड़ा? दुख होता है. संभव है कुछ लोग मेरी बात को हवा में उड़ाने का प्रयास करें, लेकिन यह उनकी इच्छा है. लेकिन जो मेरी पीड़ा है, उसे व्यक्त करना मैं जरूरी समझता हूं.
दलित लेखक संघ कोई इतने फायदे या प्रतिष्ठा दिलवाने वाला नाम नहीं है कि इसे झपटने की ज्यादा कोई जरूरत समझे, खासकर 4-5 वर्षों जो हालात चल रहे हैं. शील बोधि ने अजय नावरिया को अध्यक्ष पद संभालने की बात कहते हुए कहा था कि "दलित लेखक संघ की स्वाभाविेक मृत्यु हो चुकी है. यदि आप इसे पुन: जीवित कर सकते हैं तो कर लो."
महासचिव व अध्यक्ष दो पद ऎसे हैं जो अपने दायरे व अधिकार को लेकर उलझ पड़ते हैं. शील बोधि के समय भी यही हुआ, हीरालाल राजस्थानी के समय में भी. संगठन समन्वय से चलता है, मंच संचालन व अन्य कार्य के लिए सभी को मौका मिलना चाहिए. ताकि संगठन निरंतर चलता रहे, बढ़ता रहे. जब हम संगठन के सदस्यों को ही केवल दर्शक के रूप में बुलाते रहेंगे तो दूसरे लोग भी अपनी उपयोगिता संगठन में नहीं समझेंगे. सभी को मौका मिलना चाहिए.
हमें यह मानना ही ही पड़ेगा कि फिलहाल दलित लेखक संघ के जो दो फाड़ हुए हैं, वह केवल दो व्यक्तियों के अहम के कारण हुए हैं. जो मुद्दा मिल बैठकर सुलझाया जा सकता था, वह संगठन तोड़कर सुलझाने का प्रयास किया गया, जो आंदोलन के लिए बड़ा ही खतरनाक है. न तो संगठन का अध्यक्ष बनने से अजय नावरिया जी को ज्यादा फायदा मिलना है, न ही कर्मशील भारती जी को. रजनी तिलक के साथ भी यह बात नहीं हो सकती, वह तो पहले ही से बड़ा संगठन चला रही हैं.
दलित दस्तक(दलित मत) व अन्य शब्दांकन जैसी वेबसाइटों ने मित्रता खूब अच्छी तरह निभाई और बिना दूसरे का पक्ष जाने एक तरफा रिर्पोटिंग प्रकाशित कर दी.
मान्य उमराव सिंह जाटव उसी समय से अजय नावरिया जी के पीछे लगे हुए थे, जब तीन-चार लोग जमा हुए तथा उसमें अजय नावरिया को अध्यक्ष बना दिया, वे शील बोधि की उस बात को भूल गए कि दलित लेखक संघ की स्वाभाविक मृत्यु हो चुकी है, अजय जी आप इसे पुनर्जीवित कर सकते  हो तो कर लो.  उमराव जी  बार-बार फेसबुक पर कहते रहे कि तीन चार लोगों के अध्यक्ष. जबकि जो दलित लेखक संघ के साथी हैं, वे जानते होंगे कि बार बार सूचना देने के बावजूद लोग दलित लेखक संघ के चुनाव व कार्यक्रम/मीटिंग में नहीं पहुंच रहे थे. 10 मई 2015 को पहुंचे तो केवल छ:, जो एक गुट के थे. जैसा कि फेसबुक पर बताया जा रहा है. रजनी तिलक, हीरालाल राजस्थानी आदि केवल उन्हें ही अपने दलित लेखक संघ का सदस्य मान रहे थे. उन्हें पता ही नहीं था कि कौशल पवार, भीमसेन आनंद, नीलम रानी, राकेश आदि भी दलित लेखक संघ के सदस्य हैं, हां, वे अजय नावरिया के साथ थे. सभी को महसूस हो गया था कि यह अजय नावरिया के पक्ष में वोटिंग करेंगे.
उमराव सिंह जाटव जी ने हद ही कर दी. एक-दो दिन बाद फेसबुक पर अपनी चोट लगी पीठ का फोटो लगा दिया कि देखे, किस तरह की गुंदागर्दी दलित लेखक संघ के चुनाव के समय उनके साथ हुई. जबकि अजया नावरिया ने साफ मना कर दिया कि उनके साथ ऎसा कुछ नहीं हुआ. पता चला कि दलित लेखक संघ के चुनाव न हों, इसके लिए उमराव जी ने पुलिस तक बुला ली थी.
कुल मिलाकर अजय नावरिया जी अपने पक्ष के साथियों के कारण अध्यक्ष बन गए, निश्चित ही, यह उनके इतने फायदा का काम नहीं है, वे तो हीरालाल राजस्थानी को सबक सिखाना चाहते थे. इसका आभास उन्होंने हीरालाल राजस्थानी के मैसेज बाक्स  में उसी रात को दे भी दिया.
हीरालाल जी द्वारा चुनाव की घोषणा केवल अजय नावरिया को सबक सिखाना था, वे तय कार्यक्रम या पहले से तय कार्यक्रम के आधार पर चुनाव नहीं करवा रहे थे.
हीराला राजस्थानी भी कहां चुप रहने वाले थे, उन्होंने भी 12 मई 2015 को मीटिंग बुलाई और खुद महासचिेव व कर्मशील भारती जी को अध्यक्ष बना दिया. इस तरह दो दलित लेखक संघ बन गए, एक के अध्यक्ष  अजय नावरिया हैं, दूसरे के अध्यक्ष कर्मशील भारती जी हैं. एक की महासचित नीलम रानी हैं, दूसरे के महासचिव हीराला राजस्थानी हैं. यह तो अच्छा रहा कि पहले मा. विमल थोरात जी ने अपने अपने वाले दलित लेखक संघ का नाम बदलकर दलित साहित्य मंच रख लिया, अन्यथा इस समय तीन दलित लेखक संघ होते, तीनों ही खुद को असली दलित लेखक संघ घोषित. पिसता कौन.....? कहने की जरूरत नहीं.

रहा मैं, मैं सभी के साथ रहना चाहता हूं. हीरालाल राजस्थानी, शील बोधि, अजय नावरिया जी तीनों को जब मैंने कहा कि संगठन में गुटबाजी है. मैं उस जगह नहीं जाता जहां गुट बन जाएं. हीरालाल राजस्थानी जी को चूंकि तुरंत गुस्सा आता है, इसलिए उन्होंने तो मेरी इस बात पर ही मुझे अजय नावरिया वाले गुट में शामिल कर दिया. अजय नावरिया को कहा तो वह बोले, हम किसी गुटबाजी का शिकार नहीं हैं. शील बोधि जी ने भी कोई गुटबाजी होने से इंकार कर दिया. चूंकि मैं कोई बुद्धिजीवी तो हूं नहीं, जो किसी शब्द को इतनी गहराई से समझ पाऊं, हां, बुद्धिजीवी वर्ग के लोग मुझे समझाने का प्रयास करें कि यह गुटबाजी नहीं तो क्या है. गुटबाजी नहीं होती तो  सभी मिलकर उस व्यक्ति को अध्यक्ष व महासचिव बनाते, जिनपर किसी को विवाद नहीं होता, एक दूसरे को सबक सिखाने का प्रयास नहीं किया जाता.

कुल मिलाकर तो हुआ यही कि  डा. अम्बेडकर को मानने वालों ने ही उनके  विचार "संगठित रहो" को मानने से इन्कार कर दिया.
 संगठन तभी चलते हैं, जब हम अध्यक्ष की सुने तथा अध्यक्ष हमारी सुने. अध्यक्ष ऎसा हो, जिसका सभी सम्मान करे, वे कहना माने. अध्यक्ष भी सभी की सुने, सभी को एक करके चले. सभी की सलाह लेकर काम करे. जब किसी संगठन में राजनीति शुरू हो जाती है, वह बिखर जाता है. दलित लेखक संघ भी बिखर गया. हम सभी को सोचना है- हम सभी से कहां और क्या गलती हुई, वरना संगठन मत चलाओ, केवल लिखो. लिखना भी समाज सेवा ही है. जो नाम भी देगा, प्रतिष्ठा भी. इस समय संस्था के जरिए गैर दलितों को  हम सभी पर हंसने का मौका दिया है, इस पर विचार कर सकें तो कर लें. वरना अपनी तो सभी दलित लेखक संघ से अलविदा. 

कृपया मुझे यह भी बताने का प्रयास किया जाए कि जिन दिन समन्वय समिति बनी थी, उस दिन कौन-कौन थे? उस समय के फोटोग्राफ हों तो  बताएं. दूसरी बात क्या समन्व समिति का चुनाव करवाने का काम था या खुद ही चुनाव में भाग लेकर खुद ही पदाधिकारी बनना था.
कृपया ध्यान रखें कि कोई भी कोई भी कार्यक्रम करेगा, उसमें शामिल होने का मेरे पास समय होगा, मैं उसमें जरूर शामिल होने का प्रयास करूंगा. लेकिन कोई भी दलित लेखक संघ अपनी मीटिंग में मुझे न बुलाए, या अपनी संस्था के नाम बदले. आशा है, आप सभी मेरी भावना का सम्मान करेंगे. मुझे किसी तरह का लालच नहीं, न लेखन में नाम कमाने का या अन्य लाभ लेने का. मुझे केवल अपने काम पर ध्यान देना है. मैं न कोई प्रोफेसर हूं, न ही अध्यापक. न मेरी कोई दूसरी सरकारी या प्राइवेट नौकरी है. मुझे रोज कुआ खोदना पड़ता है, रोज पानी पड़ता है. सभी लोग मुझे क्षमा करेंगे,  ऎसी आशा है.
कोई(अजय नावरिया जी नहीं) मुझसे कहता है, अनिता भारती तुम्हारा बहुत नुकसान कर देगी , कोई कहता है यह अजय नावरिया से फायदा उठाना चाहता है. किसी ने यह तक कह दिया कि ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह बंदा इसलिए हेल्प कर रहा है कि यह उनसे फायदा उठाना चाहता है और न जाने क्या-क्या? अशोक भारती, मोहनदास नैमिशराय, विजय प्रताप आदि बहुत से लोगों को 1993 से जानता हूं. मोहनदास नैमिशराय उन दिनों नवभारत टाइम्स में थे, उन्होंने नवभारत में काम के लिए कहा, मैंने साफ मना कर दिया, नौकरी करने का स्वभाव नहीं है मेरा. अशोक भारती, रजनी तिलक आदि को मैंने कभी भी फायदे के लिए नहीं कहा, जबकि मिलते रहते हैं. संस्था मैं भी चलता हूं.1992-1993 में अशोक भारती के साथ मैंने जब काम किया है जब उनके यहां रामविलास पास की पत्रिका चक्र निकलती थी. उसका अन्य पत्र-पत्रिका, पुस्तकों का काम किया. उस समय मैं "आशा" नाम की पत्रिका भी निकालता था.
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने सही कहा था, दिल्ली राजनीति का अखाड़ा है. यदि मैं दिल्ली होता तो इतना व इतना अच्छा लेखन नहीं हो पाता, यह संभव देहरादून में ही हुआ.

हीरालाल राजस्थानी व अजय नावरिया जी : 

दलित लेखक संघ आपको इसलिए नहीं सौंपा था यह  कि संघ सार्वजनिक लड़ाई का अड्डा बन जाए. यदि कोई मतभेद था आप फोन करके, एसएमएस करके या किसी को बीच में लेकर सुलझाते. हीरालाल जी, यदि अजय जी ने कोई कार्यक्रम खुद ही तय कर लिया (वैसे तो यह इतनी बड़ी बात नहीं है,मैं करता तो गलत था), आपको इसपर आपत्ति थी तो आप अजय जी से  बात करते. वे बात नहीं करते तो उनके फेसबुक के मैसेज बाक्स में आपत्ति दर्ज करते. अजय नावरिया ने कहा कि आप उनका फोन नहीं उठा रहे थे, उठा लेते थे तो आप गुस्से में बोलते थे. अजय जी का फर्ज था कि कार्यक्रम की सूचना उनके मैसेज बाक्स में देते.
अध्यक्ष कार्यक्रम कर रहा है, हीरालाल राजस्थानी जी बिना किसी से बात किये सार्वजनिक स्थल फेसबुक पर डाल दिया कि कार्यक्रम अवैध है- आप महासचिव हो, इसलिए आप किसी कार्यक्रम को अवैध घोषित कर सकते हो? यदि दूसरे सदस्य, कार्यकारिणी, पदाधिकारियों को आप कुछ नहीं समझते? आपका फर्ज नहीं था कि आप उस कार्यक्रम को लेकर एक मीटिंग लेते और अपनी आपत्ति दर्ज करते, ताकि अध्यक्ष आगे से इस तरह का करते समय दस बार सोचते, चूंकि आपको गुस्सा बहुत आता है, इसलिए गुस्से का काबू न करते हुए तुरंत फेसबुक पर दलित लेखक संघ के कार्यक्रम को अवैध घोषित कर दिया, जिसके कारण हम दूसरों के सामने हंसी के पात्र बने. संगठन का कोई महासचिव है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वही हर बार मंच संचालन करे, दूसरों को भी मौका मिलना चाहिए.

अब उनके लिए, जो मुझे नया-नया लिखाड़ी समझ रहे हैं :

मैं अपने साथियों को बता दूं कि जब मैं घोषित रूप में दलित लेखक नहीं था, उस समय 1992-1993 में "आशा" नाम की पत्रिका निकालता था, उसके बाद प्रज्जवला नाम की पत्रिका का संपादक था. 1989 से 2000 तक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपा. 1989 से 1995 तक कई दलित कहानियां  एक गांव की दाई, रात की रानी, सफर की बात,   प्रेम की उमंग, माथे पर बिंदिया, भंगनिया, भैंस आदि आधा दर्जन के करीब प्रकाशित हो चुकी थी.चाहे मैं अच्छा न लिखता हूं, लेकिन मैं नया लेखक नहीं हूं. सन् 2000 से लेकर 2010 तक मैंने परिवार को संभालने के लिए लेखन बंद रखा. 2010 से ही लोगों से जुड़ा, दलित साहित्यकार के रूप में आपके सामने आया, पहले भी मैं साहित्य लिख रहा था, लेकिन वह दलित साहित्य था, मुझे नहीं  पता था.  तो अपनी, अपने समाज की पीड़ा लिख रहा था, व्यवसायिक लेखन के साथ-साथ. व्यवसायिक लेखन का तो मैंने कार्स भी किया था, बाद में कहानी लेखन भी किया.  मैं घोषित रूप में दलित लेखक नहीं था, लेकिन हमारी पत्रिका कहीं पर भारतीय दलित साहित्य अकादमी को कहीं मिल गई थी, उन्होंने उसी के आधार पर मुझे 1993 में अम्बेडकर फैलाशिप दिया. वो तो बाद में  ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा ही पता चला चला कि उसी दिन  उन्हें (ओमप्रकाश वाल्मीकि) को सम्मानित किया गया था.
-कैलाश चंद चौहान,
ईमेल : kailashchandchauhan@yahoo.co.in

Sunday 19 April 2015

कटने, छिलने, जलने, चोट लगने पर प्राथमिक उपचार का अच्छा विकल्प है होम्योपैथी


अक्सर घर परिवार, रास्ते-बीच में चिकित्सक के उपलब्ध न रहने तक प्राथमिक उपचार की जरूर हो जाती है. लेकिन प्राथमिक उपचार में होम्योपैथी से बढि़या कोई विकल्प नहीं है, इस बात का कोई प्रचार नहीं किया जाता. हालांकि काफी मामलों में होम्योपैथी बिना किसी जोखिम के बहुत कारगर हो जाती है. क्योंकि होम्योपैथी यदि फायदा नहीं पहुंचाती तो नुकसान भी कोई नहीं करती. प्राथमिक उपचार के कुछ उदाहरण देखिएः

चोट लगने पर होम्योपैथी :

घर में कोई न कोई दुर्घटना हो ही जाती है. सब्जी काटते समय यदि हाथ में चाकू लग गया तो खून बहने लगता है. कई बार रोके नहीं रुकता. यदि डाक्टर तक भागा जाए तो डाक्टर तक पहुंचने में काफी देर जाएगी, ऊपर से वहां लाईन लगी मिली तो और भी दिक्कत. जब तक शरीर के लिए अमृत खून काफी मात्रा में बह जाएगा. बहुतों को तो खून देखते ही घबराहट होने लगती है. कई बार परिवारों में चोट लगने या कटने पर घरेलू कपड़ा या पट्टी बांध ली जाती है, जो कि कई बार जोखिम बन जाती है, क्योंकि वहां सेप्टिक बनने का खतरा बन जाता है या हो जाता है- जिसके बाद घाव ठीक होना मुश्किल हो जाता है या ठीक होता ही नहीं, फिर वह अंग काटना पड़ सकता है. लेकिन होम्योपैथी से ऐसा कोई जोखिम नहीं रहता. घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है.
इसके लिए आप होम्योपैथी की हैमामेलिस वरजिनिका क्यू, हैमामेलिस वरजिनिका -30, आर्निका मोण्टेना-30, फेरम फास-30, एकोनाईट-30, हाइपेरिकम-30, लिडम पैलस्टर आदि रखिए. जैसे चोट आदि के कारण कहीं से खून बहने लगे तो तुरंत उस स्थान पर हैमामेलिस वरजिनिका की क्यू पावर वहां छिड़क दीजिए या रूई से लगा लें. और हैमामेलिस वरजिनिका की क्यू पावर की 10-12 बूंद आधा कप पानी में डालकर पी लीजिए, देखिए कितनी जल्दी खून बन्द होता. फिर चाहे आप डाक्टर से पट्टी कराएं या कोई क्रीम लगाकर पट्टी बांध लें. आप हेमामेलिश की भी नियमित पट्टी कर सकते है. घाव भी जल्दी ठीक होगा. इसके साथ आर्निका मोण्टेना-30, फेरफ फास-30, केल्केरिया सल्फ-30 भी कुछ दिन खा सकते हैं. आर्निका मोण्टेना-30 एंटीसेप्टीक का बहुत बढि़या काम करती है. यह सेप्टीक नहीं बनने देती. इसे लेने पर आपको कोई इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं है.

यदि घाव हड्डी तक हो गया है तो हाईपैरिकम-30, केल्केरिया फास-30 लें, रूटा-30 ले सकते हैं.
यदि दर्द में आर्निका लेने से आराम न आ रहा हो तो लिडम पैलस्टर-30 लेंकर देखें.
हड्डी टूटने के बाद जुड़ने में समय लग रहा हो या जुड़ने में परेशानी हो रही हो तो केल्केरिय फास-30 तथा ले लें-  सिम्फाइटस आफिसिनेल, लें. ले लें-  सिम्फाइटस आफिसिनेल हड्डी जोड़ने की बहुत बढ़िया दवाई है. यह दवा पीने व लगाने दोनों में अच्छा काम करती है.

चोट, कटने से हुआ घाव ठीक न हो रहा हो, उसमें पीब पड़ गई हो तो
आर्निका मोण्टेना-30
साईलेशिया-30
केल्केरिया सल्फ-30 लें.
किसी दुर्घटना के कारण बेहोशी आदि हो रही हो तो रेस्क्यू-30 दें.
यदि आंख की पुतली में चोट लग गई है तो आर्निका-30, फेरमफास-30 लें. साथ ही इनमें से एक दवाई साथ में आर्टिमिसिया वल्गैरिस लें.आर्टिमिसिया वल्गैरिस आंख की चोट की बहुत बढ़िया दवाई है. यह दवाई आंख में चोट लगने पर दूसरी परेशानियों को भी दूर करती है.
चोट, खरोंच पर लगाने के लिए कैलेण्डुला, आर्निका की क्रीम भी आती है. जले हुए स्थान पर लगाने के लिए केन्थरिश की भी क्रीम आती है. यह क्रीमें हमेशा घर में रखनी चाहिए.

जलने पर होम्योपैथी :

इसी तरह यदि किसी कारण शरीर का कोई भाग जल जाए तो आप कैन्थरिश की क्यू व 30 पावर जरूर रखें. कैन्थरिश की क्यू पावर की कुछ बूंदे पानी में डालकर जले भाग लगाएं, तुरंत आराम आएगा, फफोले भी नहीं पड़ेंगे. जलन भी खत्म होगी व घाव जल्दी ठीक होगा. कैन्थरिश क्यू की क्रीम भी होम्योपैथी की दुकान पर मिलती है.  इसे घर में रखें. कुछ दिन कैन्थरिश -30 व फेरम फास-30 को गोली में बनाकर 4-4 गोली दिन में चार बार लें. देखिए, घाव कितनी जल्दी ठीक होता है, आप भी अचंभा करेंगे. दो दवाओं के बीच में 10 मिनट का अंतर रखें.

सेप्टिक(टिटनेस) को भी ठीक करती है होम्योपैथी

आर्निका माण्टेना-30 एंटीसेप्टिक का बहुत बढि़या काम करती है. किसी भी तरह से चोट लगने पर, यानी लोहे से भी चोट लगने पर आर्निका माण्टेना-30 ले लेनी चाहिए. इसके साथ लिडम पैलस्टर-30 भी ले  सकते हैं.  यह सेप्टिक नहीं बनने देती. इसे लेने पर आपको कोई इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं. यदि चोट लगने के बाद सेप्टिक बन गया है, इलाज कराते-कराते भी ठीक नहीं हो रहा है तो एक बार होम्योपैथी का जरूर इस्तेमाल करके देखें. सेप्टिक होने की वजह से गल रहा अंग कटने से बच सकता है. घाव सुखाने, पीप रोकने-सोखने, ठीक करने में केल्केरिया सल्फ जैसी अनेक दवाईंया हैं, जो घाव को ठीक कर देती हैं. आर्निका माण्टेना, लीडम जैसी दवाईंयां सेप्टिक को ठीक करने में बहुत कारगर है. आर्निका माण्टेना, कैलेण्डूला के मरहम भी मिलते हैं. मरहम चोट पर लगाएं. कैलेण्डुला भी कटे-छिले घाव के लिए अच्छी दवा है. यह दर्द को कम करती है.


कीट पतंगे काटने पर :

कई बार घर में या दूसरी जगह ततैया, मधु मक्खी, आदि शरीर में कहीं न कहीं डंक मार देते हैं. डंक इतना भयंकर होता है कि डंक वाले स्थान पर बहुत दर्द होता है. शरीर का वह हिस्सा सूज भी जाता है. आप इस तरह के समय के लिए घर में लिडम पैलस्टर व एपिस मेल रखें. डंक वाले स्थान पर लिडम पैलस्टर  क्यू की कुछ बूंद छिड़के या रूई से लगाएं. साथ ही लिडम पैलस्टर-30 तथा एपिस मे.30 की  4-4 बूंदे 10-10 मिनट के अंतर से जीभ पर डालकर लें. यह दवाईंया सूजन नहीं होने देगी, यदि सूजन हो गई तो उसे जल्द ठीक करेगी. दर्द को भी कम करेगी. चूहे के काटने पर भी यह दवा प्रयोग कर सकते हैं, उसी तरह.

 नक्सीर छूटने होने पर : 

कई बार तेज धूप, गर्मी की वजह से नक्सीर छूट जाती है और तेज खून नाक से बहने लगता है, डाक्टर के पास ले जाने तक काफी देर हो सकती है. इसके प्राथमिक उपचार के लिए प्रथम तो सिर पर गीला तौलिया रख दें. उसके बाद यदि लाल सुर्ख खून हो तो तुरंत पहले हेमामेलिश क्यू में 12 बूंद आधा कप पानी में पिला दें. यही दवा नाक में किसी प्रकार डालें, इसके लिए चम्मच, रूई आदि का प्रयोग कर सकते हैं. फिर एकोनाईट नेपलेस-30 की 4 बूंदे मुंह में डालें. इसके बाद ब्रायोनिया-30 की 4 बंदें दें. दवाईंया देने में 10-10 मिनट का अंतर रखें
नियमित तौर पर दवाई खाने के लिए लक्षण देखकर दवाई दें. जैसे :
एकोनाईट नेपलेस-30
ब्रायोनिया ऎल्ब-30
मेरे अनुभव में एक व्यक्ति की 6-7 साल पुरानी नक्सीर ब्रायोनिया-30 से ठीक हो गई थी, 5 साल हो गये ठीक हुए, उसे आज तक दोबारा नहीं छूटी.

ध्यान रखें : उपरोक्त जानकारी होम्योपैथी के प्रचार व जानकारी बढ़ाने के लिए है. इसलिए कोई दवा डाक्टर की सलाह से या अच्छी तरह सोच-समझकर व अध्ययन के बाद ही लें.